आज के इस युग में, यदि हम तकनीकी विकास की बात करें, तो इंसानों के पास लगभग सब कुछ उपलब्ध है जिससे वे लगभग कुछ भी कर सकते हैं। लेकिन आज भी, जब महासागर की खोज(Ocean Exploration) की बात आती है, तो केवल 20% हिस्सा ही अब तक खोजा गया है। दुनिया भर के वैज्ञानिक इस पर काम कर रहे हैं, लेकिन इतनी उन्नत तकनीक(advanced technology) के बावजूद ऐसा क्या है जो इंसानों को अब तक महासागर के 80% हिस्से को नहीं खोजने से रोक रहा है? और हम अभी भी विश्वास नहीं कर पाते कि महासागर का 80% हिस्सा अभी भी अनजान है।
महासागर का आकार(Ocean Size):
महासागर पृथ्वी की सतह का 75% हिस्सा कवर करता है, जिसका कुल क्षेत्रफल लगभग 361 मिलियन वर्ग किलोमीटर (139 मिलियन वर्ग मील) है। महासागर में पानी की मात्रा लगभग 1.37 ट्रिलियन घन किलोमीटर (328.7 मिलियन घन मील) है, जो सुनने में भी बहुत विशाल लगता है।
अब तक, महासागर की औसत गहराई 12,000 फीट मापी गई है, और अब तक खोजी गयी सबसे गहरी जगह मरियाना ट्रेंच है, जो 36,000 फीट गहरा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि महासागर इससे भी गहरा हो सकता है।
समुद्र की खोज में चुनौतियाँ(Challenges While Exploring the Sea):
वैज्ञानिकों ने महासागर की खोज के लिए हर उपलब्ध तकनीक का उपयोग किया है, लेकिन इसके बावजूद विफलता एक निरंतर समस्या बनी हुई है। अब तक कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जैसे:
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अत्यधिक दबाव(Extreme Pressure): जितना गहरे जाएंगे, दबाव उतना बढ़ेगा, और इसके कारण हाई-टेक उपकरण दबाव के कारण टूट सकते हैं।
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अंधेरा(Darkness): सूर्य की रोशनी केवल महासागर में लगभग 600 फीट गहराई तक पहुंचती है, जिससे नेविगेशन(navigation) में मदद के लिए विशेष लाइट्स और इमेजिंग तकनीकों(imaging technologies) की आवश्यकता होती है।
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ठंडी तापमान(Cold Temperatures): महासागर बहुत ठंडा होता है, विशेष रूप से गहरे पानी में। गहरे महासागर का तापमान 0 से 3 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है, और 7,000 मीटर से नीचे यह 0 डिग्री तक गिर सकता है। ऐसे में, ठंड को सहन करने के लिए ठोस उपकरणों की जरूरत होती है।
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नमकीन पानी(Saltwater): महासागर का नमकीन पानी धातु के उपकरणों को नुकसान पहुंचा सकता है, इस कारण अभी तक कोई ऐसा उपकरण नहीं बना है जो इस वातावरण में लंबे समय तक टिक सके।
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दृश्यता(Visibility): वर्तमान तकनीक के अनुसार, हम महासागर में केवल लगभग 1,000 मीटर तक ही प्रभावी रूप से देख सकते हैं या काम कर सकते हैं, और उस से अधिक गहराई में काम करने के लिए कोई तकनीक अभी तक विकसित नहीं हुई है।
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ऑक्सीजन की कमी(Lack of Oxygen): गहरे महासागर में ऑक्सीजन की गंभीर कमी होती है, जिससे गोताखोरों(divers) और सबमर्सिबल ऑपरेटर्स(submersible operators ) को जीवित रहने के लिए विशेष श्वसन उपकरणों की आवश्यकता होती है।
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विस्तार(Vastness): सावधानीपूर्वक योजना बनाने के बावजूद, जैसे-जैसे हम गहरे जाते हैं, अप्रत्याशित चुनौतियाँ(unexpected challenges) उभरती रहती हैं।
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लागत और सुरक्षा(Cost & Safety): हाई-टेक उपकरण की लागत बहुत अधिक होती है, और फिर भी, अनपेक्षित स्थितियों के कारण खोज के दौरान उपकरण के विफल होने का अधिक खतरा रहता है।
अब तक इस्तेमाल की गई तकनीक(Technologies Used So Far):
महासागर की खोज के लिए वैज्ञानिकों ने मानव-ऑक्यूपाइड व्हीकल्स – Human-Occupied Vehicles(HOVs), रिमोटली ऑपरेटेड व्हीकल्स –Remotely Operated Vehicles(ROVs), ऑटोनॉमस अंडरवाटर व्हीकल्स-Autonomous Underwater Vehicles (AUVs), मैपिंग सोनार(Mapping Sonar), साइड-स्कैन सोनार(Side-scan sonar), मल्टीबीम सोनार(Multibeam sonar), रिमोट सेंसिंग(emote Sensing), और महासागर व जलवायु डेटा(Ocean and Climate Data.) जैसी तकनीकों का उपयोग किया है।
दुनिया भर के देशों ने महासागर अनुसंधान में खरबों डॉलर का निवेश किया है, और यह निवेश जारी है। उदाहरण के लिए, चीन 2030 तक एक डीप-सी स्पेस स्टेशन(deep-sea space station) बनाने की योजना बना रहा है, जो महासागर अनुसंधान को महत्वपूर्ण बढ़ावा देगा।
महासागर की खोज क्यों महत्वपूर्ण है(Why Are Oceans Important to Explore)?
महासागर जीवन की एक विशाल विविधता का घर हैं, और कई प्रजातियाँ अभी भी खोजी जानी बाकी हैं। महासागर के गहरे हिस्सों की खोज से हमें नए समुद्री प्रजातियाँ पहचानने में मदद मिलेगी, जिनका चिकित्सा या औद्योगिक उपयोग हो सकता है।
महासागर मानव गतिविधियों द्वारा उत्पादित कार्बन डाइऑक्साइड का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अवशोषित करते हैं। कई समुद्री जीव ऐसे यौगिक(compounds) उत्पन्न करते हैं जो चिकित्सा, कृषि, और उद्योग में उपयोगी हो सकते हैं।
महासागर के नीचे टेक्टोनिक प्लेटों( tectonic plate) की गतिविधि को समझने से वैज्ञानिकों को प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप और सुनामी का पूर्वानुमान करने और तैयार होने में मदद मिल सकती है। महासागर की खोज राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है, जिसमें पनडुब्बी निगरानी, समुद्री गतिविधियों की निगरानी, और समुद्री कानून प्रवर्तन को समझना शामिल है।
महासागर की खोज विभिन्न वैज्ञानिक क्षेत्रों जैसे समुद्री जीवविज्ञान(marine biology), रसायन विज्ञान(chemistry), भौतिकी(physics), और अभियांत्रिकी(engineering) में प्रगति करती है।
वर्तमान और भविष्य की महासागर खोज(Present And Future of Ocean Exploration):
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सीबेड 2030 परियोजना:
इस परियोजना का लक्ष्य 2030 तक महासागर के 100% समुद्र तल की खोज करना है। सीबेड 2030 GEBCO और द निप्पोन फाउंडेशन(The Nippon Foundation) के बीच एक सहयोगात्मक(collaborative) परियोजना है, जो आधुनिक सोनार विधियों( sonar methods) का उपयोग करके समुद्र तल का मानचित्रण करेगा(mapping the ocean floor)। -
भारत का डीप ओशन मिशन (DOM): भारत का डीप ओशन मिशन (DOM), जिसे समुंद्रयान भी कहा जाता है, भारतीय महासागर की गहराई की खोज और उपयोग करने का उद्देश्य रखता है। भारत एक मानव-युक्त सबमर्सिबल, Matsya-6000, विकसित कर रहा है जो तीन लोगों को 6,000 मीटर की गहराई तक ले जाने में सक्षम होगा।
इसका एक प्रमुख उद्देश्य पोलिमेटालिक नोड्यूल्स(polymetallic nodules) की खोज और संभावित रूप से उनका निष्कर्षण करना है, जो मैंगनीज(manganese), निकेल(nickel), कोबाल्ट(cobalt), तांबा(copper), और आयरन हाइड्रॉक्साइड(iron hydroxide) जैसे मूल्यवान खनिजों में समृद्ध होते हैं।
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NOAA ओशन एक्सप्लोरेशन की “बियॉन्ड द ब्लू” अभियान: NOAA ओशन एक्सप्लोरेशन की “बियॉन्ड द ब्लू” अभियान(NOAA Ocean Exploration “Beyond the Blue” Campaign) राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन (NOAA) द्वारा उनके महासागर अन्वेषण(Ocean Exploration) कार्यक्रम के तहत शुरू किया गया एक पहल(Program) है।
“बियॉन्ड द ब्लू” अभियान में रिमोटली ऑपरेटेड व्हीकल्स (ROVs), ऑटोनॉमस अंडरवाटर व्हीकल्स (AUVs), और उन्नत सोनार सिस्टम( advanced sonar systems) जैसी तकनीकों का उपयोग करके गहरे समुद्री क्षेत्रों की विस्तार से खोज की जायेगी।
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